प्रकृति से खिलवाड़: हर साल 95 लाख टन कचरा पैदा करते हैं हम
सुमन कुमार
पूरी दुनिया प्लास्टिक कचरे से त्रस्त है मगर भारत की हालत कुछ ज्यादा ही खराब है। प्लास्टिक के कचरे के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए सभी सरकारी संस्थाएं, अदालतें और आम जनता में अब इसे लेकर चिंता का भाव है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को प्लास्टिक से मुक्ति दिलाने के अभियान को शुरू करने और इसमें जनता की व्यापक भागीदारी को सुनिश्चित करने का आह्वान कर चुके हैं।
आखिर देश के प्रधानमंत्री को इस विषय को इतनी गंभीरता से उठाने की जरूरत क्यों पड़ी? कुछ आंकड़ों से हमें इसका जवाब मिल सकता है। दरअसल भारत हर साल 94.6 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है जिसमें से 40 प्रतिशत एकत्र नहीं होता और 43 प्रतिशत का प्रयोग पैकेजिंग के लिए किया जाता है जिसमें से ज्यादातर एक बार इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक है। एक नए अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।
यह अध्ययन ‘अन-प्लास्टिक कलेक्टिव’ (यूपीसी) की तरफ से किया गया है। यूपीसी प्रकृति से प्लास्टिक प्रदूषण कम करने की पहल है जिसमें अपनी इच्छा से कई साझेदार शामिल हैं।
अध्ययन में कहा गया, ‘पूरी दुनिया में 1950 के बाद से 8.3 अरब टन प्लास्टिक उत्पन्न किया गया और करीब 60 प्रतिशत कूड़ेदान में या प्रकृति में मिल जाता है।’
इस रिपोर्ट के अनुसार ‘भारत सालाना 94.6 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा करता है जिसमें से 40 प्रतिशत एकत्र नहीं होता और 43 प्रतिशत का इस्तेमाल पैकेजिंग के लिए किया जाता है जिनमें से ज्यादातर प्लास्टिक एक बार के इस्तेमाल के लायक होता है।’
दरअसल ये रिपोर्ट तो अभी आई है मगर देश में प्लास्टिक को लेकर चिंता लंबे समय से जताई जा रही है। यही वजह है कि अधिकांश राज्यों में सिंगल यूज प्लास्टिक यानी कि एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक के उत्पादन, इस्तेमाल और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लागू है मगर कानून प्रवर्तन एजेंसियों की ढिलाई के कारण इन सभी राज्यों में इस तरह के प्लास्टिक का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। खुद दिल्ली और उसके आसपास प्लास्टिक पर लंबे समय से प्रतिबंध है मगर किसी भी बाजार में आपको ये आसानी से मिल जाएंगे। इस तरह के प्लास्टिक का इस्तेमाल करने वाले दुकानदार इसके लिए ग्राहकों की जिद का रोना रोते हैं यानी उनका कहना है कि ग्राहक घर से थैला लेकर नहीं आते और उनसे पॉलिथीन में सामान देने की मांग करते हैं। ग्राहक दूसरी दुकान पर न चले जाएं इसलिए उन्हें पॉलिथीन रखना पड़ता है।
हालांकि इस मामले में दुकानदार बेहद सहूलियत से इस बात को गोल कर जाते हैं कि पॉलिथीन के कई तरह के विकल्प अब बाजार में उपलब्ध हैं जो कानूनी रूप से इस्तेमाल किए जा सकते हैं मगर ज्यादा मुनाफे के चक्कर में दुकानदार इन विकल्पों का इस्तेमाल नहीं करते। जाहिर है कि सिर्फ कानून से इस समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला, इसके लिए जनता में उसी तरह की जागरूकता होनी चाहिए जैसी स्वच्छता अभियान को लेकर हुई थी। तभी हम प्लास्टिक के अभिशाप से मुक्त भविष्य अपने बच्चों को दे पाएंगे।
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